Shyam milan ki baat soch man
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किसी भी कर्म के करने के पूर्व सोचना/planning कंपलसरी है बिना सोचे कोई वर्क नहीं हो सकता
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सोचने में भी पहले एम/उद्देश्य आता है, किस लिए, हमारा 1 ही उद्देश्य है अनंत आनंद की उपलब्धि
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अनादिकाल से हम दिव्य सुख के लिए 'ही' सोचते चले आ रहे हैं और फिर तन निमित्त प्रतिक्षण प्रयत्न करते चले आ रहे है
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मानव शरीर में ही तत्व विचार अथवा कोई ऐसी सूक्ष्म/बारीक बात होती है
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पशु पक्षी कीट पतंग आदि के कर्मों का उनको फल नहीं भोगना पड़ता वो भोग योनि है
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कर्म योनी मनुष्य 'ही' है भी नहीं
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देवता और अन्य भोग योनि पुरुषार्थ/कमाई के द्वारा ऐसा कर्म नहीं कर सकते कि अपने अनंत पिछले संचित कर्म को भस्म कर दे या भविष्य के अनंत काल को बना ले
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केवल मानव शरीर ही ऐसा है जहाँ हम वास्तव में पुरुषार्थ/कर्म/कमाई कर सकते हैं आनंद प्राप्ति + माया निवृत्ति
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भगवान कहते हैं भक्तों ने तो मेरा हृदय खा लिया है, मुझको कृतदास(खरीदा हुआ गुलाम) बना लिया है
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हदय से संसार वाले ही निकल जाते हैं चुटकियों में, जरा सा किसी का व्यवहार गड़बड़ हुआ उसने कहा ये बदमाश अबाउट टर्न
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‘सोचिए’ सर्व शक्तिमान भगवान नित्य दास बने इसका ऐसा मानव देह है
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1 जानवर को दास बनाना बहुत कठिन है भगवान को दास बनाना बिल्कुल कठिन नहीं कोई कठिनता का सवाल ही नहीं
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मनुष्य देह में येह वैलक्षणय है कि शेष सभी मायाधीन योनियों के जीवों को और मायाधीश तक को भी अपने अंडर(गुलाम) में कर लेता है
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सारा ज्ञान आपके काम में आ जाए(जितना ‘समझते’ हैं वो ‘समझना’ व्यर्थ न जाए) यदि 1 ज्ञान इसको भी दृढ़ कर ले, गहराई से विचार करके, मानव देह ही केवल कर्म/कमाई करने में स्वतंत्र है संचित भस्म + आनंद प्राप्ति करा सकता है
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आपको कोई चीज बढ़िया से बढ़िया मिले और आप को केवल 1 ज्ञान न हो कि ये जो चीज मिली है ये किसी भी क्षण छिन सकती है तो फिर आप कभी फुलेंगे नहीं, कभी लापरवाह नहीं होंगे
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कर लेंगे वाली बात जो हमारे मस्तिष्क में बार बार आती है और करने नहीं देती है उधार करवा देती हैं ये इसलिए की हमने नहीं 'समझा' की मानव देह 1 क्षण में छीन सकता है
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बड़ी भगवत+गुरु कृपा है जो लाखों वर्षों में पढ़ कर न 'समझ' सकते वो हमारे भाग्य थे या भगवत कृपा से वो बात सब बन गई हमको कोई मिल गया ‘समझा’ दिया ‘समझ’ में भी आ गई
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ऐसा भी नई की जबरदस्ती मान रहे हैं बुद्धि भी केह रही है हाँ बिलकुल ठीक है और करना पड़ेगा हम ही को ये भी ठीक है और करना चाहिए ये भी ठीक है लेकिन कर लेंगे
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ये करना है जो हम सोचते हैं ये तो तभी तक सोचते हैं जब तक करने की निश्चयात्मिका बुद्धि न हो जाए
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जब तक इतनी तगड़ी भूख न हो जाए कि हम करने लग जाए तब तक हमको ये सोचना पड़ेगा बार बार करना है करना है अभी करना है अभी करना है
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जितने भी हमारे कर्म सम्बंधी विषय हैं ये भोग के समय समाप्त हो जाया करते हैं
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यदि निश्चय/डिसीजन पक्का हो जाएगा तो फिर करना है सोचना बंद हो जायेगा करना प्रारंभ हो जाएगा
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जरा 1 काम है जरा ये भी निपटा ले उसके बाद फिर, अनंत जन्म बीत गए यही करते करते बेहयाई की भी कोई सीमा होती है संसार में लेकिन ये हमारी सीमा नहीं है
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आगे पाने में कोई परिश्रम नहीं सब बात बन जाए अगर मानव देह का ‘महत्व’ हमारी ‘बुद्धि’ में किसी समय धस जाए ऐसा स्वर्णिम अवसर आ जाए
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ज्ञान जो काम में नहीं आ रहा है उसका मेन और सबसे बड़ा रीजन यही है की हमने मानव देह का महत्व नहीं ‘समझा’, इसमें २ बात समझने की है, ये किसी भी समय छीन सकता है और केवल इसी देह में पर संचित कर्म भस्म कर दिव्यानन्द प्राप्ति कर सकते
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सर्व शक्तिमान भगवान को भी अशक्त बना कर अपने आधीन कर सकता है मनुष्य, किया है लोगों ने ये सारी शक्तियां हैं हमारे अन्दर
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1 बात दूसरी नई ‘समझते’ आप, क्या ? ऐसा महत्वपूर्ण शरीर या ऐसी निधि जो आपको मिली है वो कब छिन जाए इसका कुछ पता नहीं 1 सेकंड पहले भी warning नहीं होगी
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अगर हम मानव देह की क्षणभंगुरता को 'समझते' तो 1 क्षण का भी समय ईश्वर चिंतन से पृथक न खोते, कोई भी समय की लिमिट कायम कर दो किसी भी लिमिट के समय को हम बर्बाद न करते
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तुम जब घर में रहते हो तो वहाँ क्यों भूल जाते हो ये भगवान और गुरु यहाँ भी मेरे साथ हैं
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जो उधारी का रोग हमारे मस्तिष्क में है उसका रीजन यही है हमने इस मानव देह की क्षणभंगुरता पर कोई ‘गंभीर’ ‘विचार’ नहीं किया इसलिए लापरवाही हमारी बढ़ती जा रही है
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अगर हम मानव देह की क्षणभंगुरता पर ‘विचार’ गंभीरता से कर लेते तो जितनी गंभीरता से विचार करते उतने ही इस मानव देह के प्रत्येक क्षण को काम में लेते, प्रत्येक क्षण को
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विद्यार्थी जुलाई में जिस स्पीड में पढ़ता है जिस लगन से और इम्तिहान के 1 रात पहले जिस लगन से पढ़ता है दोनों में कितना बड़ा अंतर है
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क्यों विद्यार्थी जी ये ‘कैचिंग’ पॉवर आपने कहाँ से आ गयी इम्तिहान की रात को ये कैचिंग पॉवर कहाँ गई थी जुलाई में
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जो हमारी खोपड़ी में ‘लापरवाही’ थी की अभी बहुत समय है इस कारण वो हमारी कैचिंग पॉवर weak थी
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इम्तिहान की रात को हमारी वो ग्रहण करने की शक्ति, धारणा शक्ति इतनी हो गयी है की हम एकदम, अरे अब राते भर तो है
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इम्तिहान की रात को, अरे अब तो बिल्कुल तैयार ही करना है जरा सा वो पन्ना पलट लो क्या स्पीड होती है उस समय और क्या कैचिंग पावर होती है उस समय
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अगर हम ये लापरवाही का सिद्धांत रखते है की 25 साल तो कम से कम अभी जिएंगे ही तो देखो उसी प्रकार हमारी साधना होगी जैसे जुलाई में पढ़ने वाले की होती है
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जब हमारे सिद्धांत में ये बात आ जाएगी की 1 क्षण में समाप्त हो सकता है तो उस समय हम किताब के पन्ने को जैसे आखिरी समय में इम्तिहान के लिए जा रहे हैं और उस समय, हाँ भई जरा ये हं चले अब चले, उस समय जैसे हम दतचित होकर के पढ़ते हैं और उसको ग्रहण करते हैं ऐसी साधना हम करेंगे
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समय का सूचक यंत्र इतना बलवान होता है कि वो इतना बड़ा परिवर्तन कर देता है जिसे मनुष्य ‘सोच’ नहीं सकता वो चाहे भय का हो चाहे हर्ष का हो
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डेली प्रतिक्षण जीव यमालय को जा रहे हैं मर रहे हैं लेकिन बचे हुए इस शरीर की क्षणभंगुरता पर ‘विचार’ नहीं कर रहे हैं वे अपने को ‘समझते’ हैं हमारा तो अभी बहुत लम्बा हिसाब है
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मनुष्य ‘सोच’ रहा है मैं अभागा हूँ तो भाग्यवान कौन है भई कुत्ते बिल्ली गधे ये भाग्यवान होंगे फिर तो जो भोग योनि वाले हैं, इतनी अल्पज्ञता
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तुम्हारे समान ईश्वर ने जितनी रियायतें कृपाएं तुमको दी है इतनी रियायतें इतनी कृपाएं 7 अरब मनुष्यों में कितनो को मिली
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यदि हम ये पक्का 'निश्चय' कर ले और ‘समझ’ ले इस बात को ऐसा 'महत्वपूर्ण' शरीर हमको मिल चूका है
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सबसे बड़ी चीज मनुष्यों में भी है, वो है अपना उद्देश्य ‘समझना’ और अपने उद्देश्य को पाने के लिए साधना ‘समझना’ ये सबसे अंतिम भगवत कृपा है
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जितनी कृपाऐं/रियायतें/फैसिलिटिस आपको मिलनी थी वो आपको मिल चुकी, पुरुषार्थ करने वाले वाला मानव देह, अपना लक्ष्य और उसको पाने की साधना समझाना
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हमको शास्त्र वेद यानी स्पिरिचुअल लॉ ईश्वरीय कानून की जो उलझी हुई गुत्थी थी वो सुलझ गई हमारे मस्तिष्क में बैठ गया है, बिल्कुल ठीक हाँ ये करना है तो फिर अब क्या परख रहे हो अब तुम्हें क्या मिलना चाहिए ?
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अगर भगवत प्राप्ति भाग्य में लिखी होती तो भाग्य ही क्यों बनता तुम्हारा
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भगत प्राप्ति जिसको पूर्व जन्म में नहीं होती उसी का तो भाग्य बनाया जायेगा
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जिसका सांसारिक दुर्भाग्य होता है वही ईश्वर की ओर चलता है
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वास्तविक भाग्यशाली तो वो हुआ जो ईश्वरीय तत्व को ‘जान’ ले यानी ईश्वर क्या है हम क्या है हमारा क्या सम्बन्ध है ईश्वर कैसे मिलेगा, हमें क्या करना होगा, कैसे करना होगा
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अनंत जीवों में भी सर्वोच्च 7 अरब आदमियों में भी इने गिने लोगों में हमारा नाम आया है कुछ हजार में आया है इतनी कृपा
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क्यों भई 7 अरब में कितने आदमी विश्वास के साथ ये जानते है हाँ ईश्वर ऐसे मिलेगा और मिलेगा, हम आज चाहे मिल सकता है
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इतना बड़ा सौभाग्य इतनी बड़ी भगवत कृपा भी जिसके ऊपर हो और वो उस कृपा को ने रिलाइव करे
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इतना कृतघनी है की मैं अभागा हूँ गुरु जी के मिलने पर उनके इतना दान देने पर तुम कहाँ पहुँचे अभागा बने दुर्भाग्यशाली बने, तो सौभाग्यशाली पहले रहे होंगे ये गुरुजी के मिलने से दुर्भाग्यशाली हो गए होगे
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जितने परसेंट हम भीतर से उसके आदेश के अंतर्गत चलेंगे(शरणागति), उसकी आज्ञा का पालन करेंगे, उसके प्रति अपनी फेथ की बुद्धि जमाएंगे उतने ही परिमाण में हम उसके पास गए ये माना जाएगा
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मानव देह ही ऐसा देह है जिसमें हम इन 2 बातों पर गंभीर विचार करके यानी मानव देह क्षणभंगुर है और मानव देह ही 1 कर्म का क्षेत्र है इसी देह में हम सब कुछ कर सकते हैं, सब कुछ पा सकते हैं
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सोच मन श्याम मिलन की बात ये बात और कोई देह वाला और कोई शरीर वाला नहीं केह सकता अपने मन से की सोच मन श्याम मिलन की बात क्योंकि वे भोग योनियों है और बहुत अल्प ज्ञान उन योनियों में है
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मनुष्य शरीर को छोड़कर शेष जितने भी शरीर हैं भोग योनि के वे सब कर्म/कमाई/पुरुषार्थ करने में स्वतंत्र नहीं है वहाँ केवल कर्म का फल भोगवाया जाता है
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मानव देह के 'महत्व' को नहीं ‘समझा’ + उसके 'क्षणभंगुरता' को नहीं 'समझा' इसलिए श्याम मिलन की बात सोचने का अवसर ही नहीं मिला
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ये नहीं ‘समझ’ पाए की ऐसा इंपॉर्टेंट देह जो हमको मिल चुका है वो अमूल्य है बहुत कीमती है
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हमारा ये ‘डिसीजन/निश्चय’ नहीं हुआ अभी तक तक की अगले क्षण हम मानव देह युक्त रहे इसकी कोई गारंटी नई
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without परमिशन कोई information नहीं और इमीडिएटली आपका शरीर छीन लिया जाएगा कब ? पता नहीं बस इस प्वाइंट पर हमने ‘ध्यान’ नहीं दिया इसलिए श्याम मिलन की बात हमने सोची नई
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श्याम मिलन की बात हमने सोची तो ऐसे सोची जैसे किसी का पेट भरा हो औ कोई कहे खाओगे ? ओ खा लेंगे और जो खूब भूख लगी हो 3 दिन की फिर कोई कहे खाओगे ? हाँ भैया खाएंगे
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वो जो आवाज है हृदय से निकलती है भूखे की वो श्याम मिलन की बात सोचने की हम लोगों की नहीं हो पाई अभी, वो भूख ही नहीं पैदा हो पा रही है क्योंकि हम लोग ‘सोचे’ हैं अरे अभी क्या है
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बच्चा सोचता है अभी तो बच्चे हैं, जवान सोचता है अभी तो और ही उमर है, बूढ़ा सोचता है हाँ हाँ कर लेंगे अपुन तो सब समझते ही हैं
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अगर कोई व्यक्ति ‘समझ’ ले मानव देह के इम्पोर्टेंस को तो वो साधना करने में 1 सेकंड का उधार नहीं करेगा
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1 सेकंड के उधार करने की जिसकी आदत पड़ गयी वो 1 घंटे का उधार करेगा, 1 दिन का करेगा, 1 वर्ष का करेगा अब तो अगले जन्म में कर लेंगे जी यहाँ पहुँच जाएगा
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अगर किसी ने मानव देह पाने की surity वाली बात कर ली है तो उसने उधार नहीं किया होगा, वो यहाँ भी उधार नहीं करेगा उसकी बात बन जाएगी
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इतिहास में अनंत संत जो हुए हैं उन्होंने यही ‘सोचा’ होगा अगला क्षण मिले न मिले अभी करो तुरंत करो
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वेद केहता है जल्दी करो, तुरंत करो, अभी करो, उधार करना बंद करो
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आप लोगों ने अनादिकाल से अब तक अनंत जन्मों में 'मिलन' की बात ही सोची और मिलन ही किया
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1 व्यक्ति 1 वस्तु को पाना चाहता है किसलिए ? मिलन के लिए, 1 व्यक्ति उस वस्तु को छोड़ना चाहता है क्यों ? मिलन के लिए
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क्या मिलन अनादिकाल से हमने सोचा ? आनंद उसी का मिलन चाहते, बाप/माँ/बच्चे/बीवी/पति/रसगुल्ला से मिल जाए
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वो आनंद का मिलन चाहते हैं आप लोग और कुछ नहीं चाहते
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जो कुछ आप चाहते हैं सब धोखा है ये सब तो care-off है इसके द्वारा आनंद चाहिए, रसगुल्ला के द्वारा आनंद मिले, माँ/बच्चे/बीवी/पति के द्वारा आनंद मिले
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आनंद भी कैसा ? अपना, अपना माने मैं का, मैं माने आत्मा, आत्मा माने ईश्वर का अंश
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ईश्वर का अंश अपना आनंद चाहता है
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अंश का अपना आनंद अंशी अर्थात ईश्वरीय आनंद का मिलन चाहते हैं हम
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ईश्वरीय आनंद को छोड़ कर शेष सभी आनंद अनंत अनंत बार मिल चुके प्रत्येक जीव को
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अनंत बार इंद्र बन चुके हैं लेकिन भूल गए इसलिए करोड़पति अरबपति बनकर आनंद पाने की प्लानिंग कर रहे
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जब कुबेर की सीट पाकर धन से आपका पेट नहीं भरा तो 1 लाख, 1 करोड़ 1 अरब के प्लानिंग से क्या मिलेगा, ये आपको याद नहीं
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तो तुम अपने को समझदार ‘समझते’ हो बस इससे बड़ी और कोई नासमझी नहीं है
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श्याम मिलन माने ईश्वरीय आनंद का मिलन
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मिलन क्या बलाए है ? आप समझा नहीं सकते समझ लीजिए न समझा सकते है
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आँख से मिलन कान से मिलन रसना से मिलन नासिका से मिलन और त्वचा से मिलन
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5 ज्ञानेंद्रिय होती है छटा कोई मिलन न था न है न होगा न संसार में न परमार्थ में कंही नई बस ये 5 मिलन होते हैं
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शब्द स्पर्श रूप रस गंध, ये 5 सब्जेक्ट/विषय बस इन्हीं का अपने अपने विषय से मिलना इसका नाम मिलन
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मिलन में सुख भी मिल सकता है दुःख भी मिल सकता है
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1 आपका प्रिय है उसको देखा हेल्लो कब आए तुम, सुख मिला, 1 को देखा वो अपरिचित था हाँ ठीक है जा रहा है, आप भी सीरियस हो गए जरा और 1 को देखा उसने आपका अहित किया था शत्रु है, देख कर के आपने भृत्ति टेड़ी कर ली
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मिलन माने आँख रूपी इन्द्रिय का उस वस्तु से टच होना उसका नाम मिलन
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यही 5 मिलन करते करते अनंत जन्म बित गए, कहीं मम्मी/बाप/बीवी/रसगुल्ला से प्यार, इन्ही को देखना सुनना सूंघना स्पर्श करना आलिंगन चुम्बन आनंद का जो आपका सब्जेक्ट है इसी को किया आनादिकाल से अब तक
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1 1 इंद्रीय के अनंत अनंत सामान है
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आप ये गलती कर रहे हैं की इन सब विषयों से देखने की भूख शांत नहीं होगी बढ़ेगी
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जो हमेशा से अच्छा खाया अच्छा पेहना कोठी मोटर में रहा है वही उसका मरीज होगा, उसी को उसकी प्यास और भूख और वासना सताएगी और बढ़ेगी
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जितना पैसा आएगा उतना ही उसको पैसे का रोग पैदा होगा ये साइंस है, जितना आग में घी डालोगे बढ़ेगी की तृप्ती होगी
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जो अधिक दिन चाय पीता है उसी को तो चाय की बीमारी आ आ करके पिंच करती है खोपड़ी में
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ये छोटी छोटी चीज(रसगुल्ला, नमक) भी जब हमको इतना बांधे हुए हैं तो फिर हम श्याम मिलन की बात सोचने की क्या बात करें कहाँ हम वहाँ अभी बहुत दूर हैं
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हमारी विवेक मति बुद्धि से हम ये समझते भी हैं की भई चाय जो हम पीते हैं इससे हमारे शरीर को तो फायदा है नहीं साइंस के अनुसार भी
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जितना ही मिलेगा उतनी ही वासना बलवती होगी
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मिलन 2 प्रकार का 1 नकली 1 असली, 1 एक्टिंग वाला और 1 फैक्ट
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1 मिलन ऐसा मिलन जिसमें मन का अटैचमेंट भी हो और इंद्रियों का मिलन भी हो
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1 मिलन ऐसा मिलन जिसमें मन का अटैचमेंट न हो केवल इंद्रिय का मिलन हो
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जैसे आपका कोई प्रिय आया और आपने दरवाजा खोला हाँ आ गए देखिये आँख को सुख मिल रहा है ये थर्ड पर्सन देख रहा है और मन को भी सुख मिल रहा है ये आपका experience इसे कोई नहीं देख रहा है
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1 तो देखने वाली चीज कि आपने आँख/मुख/शब्द में आनन्द की एक्टिंग करके, ओ आप आ गए मैं तो परख ही रहा था दिन भर से आपको आज, सफेद झूट, बीबी से केह रहा था की आज वो आने वाला है पता नहीं बदमाश कै दिन रूकेगा यानी अन्दर गड़बड़ बहार ठीक
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1 मिलन जिसमें आनंद का अभिनय हो रहा है अन्दर अटैचमेंट नहीं है मन का और बाहर से एक्टिंग हो रही है
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1 मिलन जिसमें अंदर से आनंद मिलता है हमारा पति/बीवी/बेटा है कोई हमारा प्रिय जन आता है
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मन का अटैचमेंट नहीं इसलिए भीतर सुख नहीं मिला
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भीतर से जब आपको सुख की फीलिंग होती है उसी का नाम अटैचमेंट
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जितनी लिमिट की फीलिंग हो उतना ही बड़ा अटैचमेंट
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जब स्त्री पति का प्यार है और चिपटा रहा है तो आनंद
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जब स्त्री पति में लड़ाई हो गई और 1 पार्टी को खुश करने के लिए 1 पार्टी चिपटा रही है तो वहाँ भी सुख नहीं मिलेगा एक्टिंग करेगा वो
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मंदिर की मूर्ति और सजावट जैसी है उसी प्रकार का आपका हृदय का भाव बनता है
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आप लोग मंदिरों में जाते हैं तो वहाँ पत्थर मिलन होता है, मतलब ये की आप जाते हैं तो पत्थर को देखते है ये पत्थर की मूर्ति कैसी है, इसके कपड़े कैसे है, येह मंदिर की बनावट/सजावट/लाइट कैसी है, ये सब आप देखते है मंदिर में ये पत्थर की बुद्धि हुई आपकी
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मन का अटैचमेंट नहीं होता इन्द्रियों से हम खूब सब कुछ देखते हैं भगवान सम्बंधी बात इसलिए अनंत संतों/मूर्तियों के दर्शन करने पर भी हम जहाँ के तहाँ खड़े हैं
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तुमने रोग मिटाने की दवा ‘समझी’ ही नहीं अभी, वो तो दवा है भगवान से मन का प्यार + इंद्रियों का मिलन और तुम्हारा तो केवल इंद्रियों के मिलन की बात चली
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5 ज्ञानेन्द्रियों का जो विषय है और उसमें मन का प्यार भी हो तो उसका नाम मिलन, इस प्रकार का श्याम मिलन यदि हम सोचे तो बात बने
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श्याम मिलन की बात सोचे का मतलब तो यही हुआ न जैसे हम माँ से, बाप से, बेटे से, पति से, संसार के सामान से प्यार करते हैं ऐसे ही श्याम सुन्दर से करे ?
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संसार में तुम क्या मिलते समय ही उस वस्तु से प्यार करते हो वियोग में नहीं करते
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1 माँ के पेट में बच्चा था और गर्भपात हो गया, वो माँ रोती है, उसने न बच्चे को देखा, न स्पर्श किया, न उसके शब्द सुने फिर भी रोती है क्योंकि वो ये सोच कर खुश थी वो मिलेगा, वो बच्चा आएगा बाहर तो देखेंगे सुनेंगे
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माँ जिसके पेट में बच्चा है वो मिलेगा सोच कर माँ विभोर हो सकती है तो श्याम मिलन की बात सोच कर जीवात्मा क्यों विभोर नहीं हो सकती ?
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संसार में तुम पैसे(फ्लैट, impala) को पाने के लिए या कलेक्टर कमिश्नर की सीट पाने के लिए कितने व्याकुल हो कितना प्रयत्न करते हो तो क्या श्याम मिलन के लिए तुम प्रयत्न नहीं कर सकते ?
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संसार में कौन सी चीज पेहले मिल जाती है तब उसके लिए प्रयत्न करते हैं, किसको पेहले सर्टिफिकेट मिल गया बाद में उसने इम्तेहान दिया ? कौन पेहले लखपति बन गया बाद में बिजनेस शुरू करता है ?
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श्याम मिलन पहले हो जाए तो चिंतन बाद में करोगे दिमाग सही है तुम्हारा कैसे पॉसिबल है, अरे पहले साधना फिर सिद्धि
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पेहले तुमको सोचना होगा न तब वो वस्तु मिलेगी
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संसार में प्रयत्न करने पर भी फल सही मिलेगा ये कोई surity नहीं, सभी आदमी व्यापार करते हैं लेकिन किसी की बन गई चौगुना कर लिया और कोई कर्जदार हो गया
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श्याम मिलन की बात सोचा और श्याम मिलन हुआ, सोचने मात्र से ही काम बन जाएगा कुछ करना वरना नहीं है
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स्पिरिचुअल एरिया में सोचना बस फल मिलेगा sure मिलेगा चैलेंज के साथ वहाँ कोई शक्ति डिस्टर्ब करने वाली नहीं है क्योंकि ईश्वर सर्वोपरि शक्ति है वहाँ कोई दखल नहीं दे सकता काल, कर्म, स्वभाव, गुण कोई भी
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संसारी वस्तु मरने के बाद तो छीनेगी ही इसके लिए प्रयत्न क्यों
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श्याम मिलन की बात सोचने का मतलब ये है कि पांचों इंद्रियों के विषयों की कामना श्याम सुंदर संबंधी
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विषय भोगी वो जो 5 ज्ञान इन्द्रियों के विषयों का जो बहुत सामान इकट्ठा करता है, तमाम सामान पदार्थ ले लेकर के इन इंद्रियों को तृप्त करने की प्रैक्टिस करता है
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माँ/बाप/स्त्री/पति/बेटे से प्यार करना गलत ? हाँ, जिस पर्सनालिटी से प्यार करते हो वो माया के अंडर में हो बस प्यार गलत
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यदि मन का अटैचमेंट तामस पर्सनालिटी में है तो तामस फल मिलेगा (नरक,कुत्ते/बिल्ली) यदि वो पर्सनालिटी राजस है तो राजस फल मिलेगा यदि वो पर्सनालिटी सात्विक देवता है तो स्वर्गलोक मिलेगा
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यदि मन का अटैचमेंट भगवान या महापुरुष है तो तुम्हे दिव्यानंद मिलेगा
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पर्सनालिटी के अनुसार फल मिला करता है प्यार तो सबमें उसी प्रकार करना पड़ेगा
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विषय भोगी मायिक जगत का निंदनीय ईश्वर जगत का वंदनीय यहाँ तक की क्रोध
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महापुरुष और भगवान में 1 परमाणु का अंतर नहीं होता
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खिंचाव तो हमारा होगा भगवान के प्रति वही होगा महापुरुष के प्रति उतनी लिमिट में होगा
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हमारी जितनी गड़बड़ी होती है उसी के अनुसार हम महापुरुष और भगवान के मिलने पर खोपड़ी लगाया करते हैं
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महापुरुष के भीतर देखना चाहिए बहीरगं प्रपंच(cloth, height, color, age) नहीं जैसे अष्टावक्र का जनक के सभा में आगमन
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इस शरीर को अनंत बार कुत्ते बिल्ली गधो ने भोग है जिसका तुम्हें गर्व है
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16 वर्ष की उमर में गधी भी अपने को अपसारा 'समझती' है
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जो श्याम मिलन की बात सोच सोच करके इतना व्याकुल हो जाए की रहा न जाए श्याम सुन्दर उसको छेड़ते हैं
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श्याम मिलन की बात हम इसलिए सोचें की समस्त विश्व के जितने भी पदार्थ हैं उनमें हमारी आत्मा का आनंद नहीं है
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हमें अपनी आत्मा के आनंद को पाने के लिए मायातीत क्षेत्र के मिलन की प्लानिंग करनी होगी
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श्याम मिलन की बात सोचने में जो बाधक तत्व है वो ये है कि हमने मानव देह का महत्व नहीं समझा और उसकी क्षणभंगुरता पर गंभीरता पूर्वक विचार नहीं किया
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धर्म माने धारण करने योग्य कर्म माने करने योग्य अर्थात
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जो अच्छा हो, जिसका फल/परिणाम अच्छा हो उसी को धारण करने योग्य माना जाता है
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ईश्वर के अस्तित्व/निरीक्षणत्व न माने अपने को प्राइवेट मान ले और उच्छृंखलता या विषय वासना के कारण, किसी इन्द्रिय के विषय के अंडर में हो जाने के कारण कोई गलत काम करे इसी का नाम चार्वाक मता अनुयायी
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मन की वासना जब बढ़ेगी तो आत्म शक्ति का ह्रास होगा
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तुमने सब बिगाड़ लिया 1 क्षण के इस जोश में रसगुल्ला है सामने गरम गरम और जेब में पैसा है औ भई कुछ खाएं देखा जाएगा, तो शास्त्र/गुरु जी कहते है की मन के बहकावे में न आओ, वो भी अपना ठीक है उनकी जगह पे लेकिन
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अपन तो रसगुल्ला खाएंगे इस समय देखो ‘डिसीजन’ हो रहा है शास्त्र वेद गुरु सबकी आज्ञा का उल्लंघन करके अपने मन के अनुसार बुद्धि का डिसीजन
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मन की लिफ्ट बढ़ती जाएगी, आज मन ने ये कहा हमने उसकी मान ली सुन ली कल और कुछ कहेगा तो वो भी सुन लेंगे तो फिर इस तरह कहाँ पहुँचेंगे हम लोग
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हम हारते गए मन से और मन हमारे ऊपर हावी होता गया उसी का ये दुष्परिणाम है कि 84 लाख योनियों का चक्कर लगाते लगाते अनंत जन्म बीत गए
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ईश्वर को भूल जाते हैं, गुरु को भूल जाते हैं शास्त्र वेद के सिद्धांत को भूल जाते हैं
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देखने/सुनने/सूंघने की इच्छा, ये जो 5 ज्ञानेन्द्रियों की इच्छा है इसके चक्कर में हम चार्वाक मतावलम्बी हो जाते हैं
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क्रोध से प्रत्यक्ष में ही नुकसान होता है फिजिकल ब्लड भी जला, मेंटल बैलेंस भी हमने खोया, स्प्रिचुल हानि हो ही गयी और भविष्य में तो नुकसान होगा ही
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तमोगुण(क्रोध,लोभ, मोह) को तुमने क्यों ह्रदय में स्थान दे दिया जिस हृदय में श्याम सुंदर के लिए स्थान देने का तुमने गुरु से वादा किया था
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गुणातीत श्याम सुन्दर और सबसे नीचे वाला गुण तमोगुण(क्रोध) दोनों को 1 सीट यानी 1 लेवल पर ला करके ड्राइंग रूम दे दिया
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अगर हम अपने दोषों को गहराई से सोचे और फील करें तो हमारे दोष धीरे धीरे कम हो जाते हैं लेकिन हम फील नहीं करते, आदि हो जाते हैं
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छोटा भी तुमको हित की बात समझावे तो तुमको मान लेना चाहिए और संसार में जहाँ तुम प्रत्यक्ष लाभ देखते हो वहाँ मान भी लेते हो
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ईश्वरीय मामले में आप बड़े से बड़े काबिलों की बात को भी ठुकरा देते हैं उस क्रोध में
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क्रोध आने से पहले बुद्धि मोहित होती है फिर याददाश्त समाप्त होती है फिर बुद्धि नष्ट हो जाती है
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क्रोध में बुद्धि नष्ट हो गई, सोचे किस बुद्धि से क्या सहीं है क्या गलत
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1 वाक्य में आप तमोगुण को बुला लेते हैं
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जिस क्षण में जीव को भगवत प्राप्ति होती है उस क्षण तक तमोगुण आपने रहेगा अकाट्य है
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भगवत प्राप्ति पर ‘ही’ माया की निवृति होती है
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हर समय आप में हर गुण नहीं रहता 1 समय में 1 ही गुण रहता है बलवान
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मायाधीन के अंदर तीनों गुण सदा रहते हैं
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जब आप लोग जातें हैं किसी के यहाँ मेहमान बनकर तो कैसा व्यवहार करते हैं सोचिए कैसे शांत, जी मैं हेल्प कर दू, जी जी नहीं मैं तो अभी खा के आया हूँ
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जो मीठा मीठा व्यवहार एक्टिंग वाला हम लोग आपस में करते हैं इससे कोई किसी को नहीं ‘समझ’ सकता
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बदमाशी अच्छाई की कोई बात नहीं है, बात तो है 3 गुण की वो सात्विक राजस तामस 3 गुण सदा सब में रहते हैं
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जिस गुण का एटमॉस्फियर मिल गया वो गुण आउट/बलवान हो गया, जैसे 2 साल से बोरे में बंद गेहूं अंकुर नहीं पैदा हुआ लेकिन जब खेत में डाला गया तो पेड़ बन गया
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तीनों गुण अन्दर नित्य बैठे घात लगाए रहते हैं जैसे जेब कतरे, की जहाँ हमारा atmosphere मिले हम अपना विराट रूप दिखाए
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जिस दोष का वातावरण मिला बस वही दोष प्रकट हो गया, क्रोध का atmosphere मिले तो क्रोध आता है लोभ नहीं
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ये नहीं सोचते की जो गड़बड़ करने वाली बुद्धि है उसका जजमेंट आपके उस मन के मुआफिक ही तो होगा तो आपको इसमें सफलता कैसे मिलेगी
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स्प्रिचुअल पॉवर जिसकी अधिक बढ़ जाएगी ईश्वर भक्ति के कारण उसके ये तीनों दोष फिर नैचुरल कमजोर हो जायेंगे अब नैचुरलटी आई लेकिन रहते हैं
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अगर इश्वर भक्ति आपने छोड़ दिया और कुसंग में आप बढ़े आगे तो फिर तीनों गुणों के दोष पहलवान हो जायेंगे
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भाव भक्ति पर जाकर जहाँ से भगवत प्राप्ति होती है अंतिम क्लास वहाँ जाकर भी और जीव राक्षसी स्थिति को पहुँच सकता है यदि नामापराध करें
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भगवान का नाम, उनका उनका गुण, उनकी लीला, उनके धाम उनके संत इतने में जो दुर्भावना करे वो नामापराध है
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नामापराध किया की फिर चला आया नीचे
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नामापराध की गमाई जो हमारी है ये कमाई को खा जाती है वरना 1 भगवत प्राप्ति क्या अनंत भगवत प्राप्ति हम लोग कर चुके होते अब तक
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हमारी जो बुद्धि है तर्कशील संशयात्मिका ये नामापराध करने लगती है
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नामापराध सबसे बड़ा अपराध है करोड़ो ब्रह्म हत्या का पाप भी मुकाबला नहीं कर सकता 1 नामापराध का
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महापुरुष तभी क्षमा करेगा जब तुम हृदय से अपनी गलती मान कर आँसू बहाओगे महापुरुष भी कुछ शर्त नहीं लगाएगा वो तो परम दयालु है न
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चूँकि तुम्हारा मन अनादिकाल से कुसंग का अभ्यस्त हैं इसलिए कुसंग में पड़ते ही तुम तल्लीन हो जाओगे तदरूप हो जाओगे
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तुम अपने लिए सोचो तुम कैसे हो कि श्याम सुंदर तुमको अभी तक नहीं मिले और तुम जिंदा हो
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तुम्हे ये फीलिंग नहीं है की अगर अगला क्षण न मिला तो क्या होगा फिर मानव देह कब मिलेगा, कैसे मिलेगा मिल भी जाए तो फिर सारी बातें बननी है न
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मानव देह + वास्तविक गुरु + संसार से वैराग्य ये सारी बातें बने तब तुम यहाँ पहुँचोगे जहाँ पर हो
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इतनी दूर पहुँच के तुमने सब गड़बड़ कर दिया तो फिर अब कब और कैसे आशा करते हो की हम अपना कल्याण कर सकेंगे किसी भी जन्म में
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3 गुण रहेंगे सबमें कुछ दबे रहेंगे कुछ बलवान होंगे समय समय पर आया जाया करते हैं
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1 गुण के अवलंबी दूसरे गुण वाले की निंदा करते हैं इसका निर्णय वोह कर सकता है जिसने सबको देखा हो समझा हो यानि सर्वज्ञ भगवान है
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सर्वप्रथम हमें ये सोचना है कि वोह कौन सी वस्तु है जिसे हम चाहते हैं ? आप कहेंगे आनंद
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वोह कौन सा आनन्द है जिसे हम चाहते है ? आप कहेंगे जिससे बड़ा कुछ न हो, जो अनंत मात्रा का हो, अनंतकाल के लिए हो, हम पूछेंगे क्यों ? आप कहेंगे स्वभाव है
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बिना किसी के सिखाये पढ़ाये ही हम लोग उसी अनंत आनंद को चाहते हैं क्योंकि शेष सब आनंद अनंत बार मिल चुके किन्तु हमारी प्यास शांत नहीं हुई
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क्योंकि हम ईश्वर के अंश हैं माया के अंश नई माया से हमारा निर्माण नहीं हुआ इसलिए माया के पदार्थों से हमारे आत्मा के सुख का कोई प्रश्न ही नहीं पैदा होता
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माया प्राकृत हम दिव्य अतएव हमारा सब्जेक्ट भी दिव्य होगा अतएव हमारा सुख भी ईश्वरीय होगा
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भगवान को पाकर ही जीव आन्दमय हो सकता है अन्य कोई मार्ग नहीं
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तामसी + राजसी व्यक्ति अपने धर्म को श्रेष्ठ समझता है और मृत्यु के बाद मैं समाप्त ऐसा मानता है इसलिए मरने के बाद के परिणाम को नहीं सोचता, जैसे हम लोग, मारीच
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सात्विक वक्ति मरने के बाद के परिणाम स्वर्ग प्राप्ति को समझ कर उसको धारण करता है वो भी अपने धर्म को श्रेष्ठ 'समझता' और तामसी राजसी लोगों को मूर्ख
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जाग्रत स्वप्न सुषुप्ति ये 3 अवस्थाओं का सबको अनुभव होता रहता है इसमें अकेला मैं का अनुभव करते है
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हम लोग 2 रूप में पुकारे जाते हैं 1 तो मैं जीवात्मा के रूप में और 1 मैं शरीर के रूप में
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शरीरी शरीर के बिना नहीं रह सकता
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शरीर शरीरी के बिना नहीं रह सकता
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आत्मा शरीर के बिना नहीं रह सकता शरीर आत्मा के बिना नहीं रह सकती
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आत्मा के बिना शरीर ढ़ेह जाता है समाप्त/सड़ जाता है 4 दिन भी नहीं टिकता
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अनंत बार हम लोग मर चुके हैं, शरीर छोड़ चुके हैं
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जब आप लोग मरते है इस शरीर को छोड़ने के पहले आत्मा को दूसरा शरीर मिल जाता है तब वो इस शरीर को छोड़ता है
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साँप अपने ऊपर के चमड़े(केचुल) को तब छोड़ता है जब नीचे दूसरी तेह आ जाती है जबरदस्ती निकालो तो घाव हो जाता है, ऐसे जीव शरीर छोड़ता है
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कोई फोड़ा हो जाता तो जो चमड़ा नीचे आ जाता है तब ऊपर का अपने आप निकल जाता है जबरदस्ती निकालो तो घाव हो जाएगा, उसी प्रकार आत्मा को जब दूसरा शरीर मिल जाता है उसके बाद शरीर छोड़ता है। आपका experience ये नहीं हो सकता है ये सूक्ष्म विषय है
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जब आत्मा शरीर छोड़ती है तो आत्मा नहीं दिखाई पड़ता किसी को भी क्योंकि वो दिव्य है हमारी आँखे प्राकृत हमारी खोपड़ी प्राकृत
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जब शरीर लेकर आत्मा निकलेगी इस शरीर से तो हमारे आँख से वो दिखाई नहीं पड़ता क्योंकि वोह शरीर भी सूक्ष्म होता है
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सूक्ष्म शरीर को लेकर के माँ के पेट में भी जाएगा अगर कहीं जन्म लेना है
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इस शरीर को छोड़ने के पहले सूक्ष्म शरीर से आत्मा बाहर निकलता है
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सूक्ष्म शरीर आँख का सब्जेक्ट नई
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शरीर सूक्ष्म के बिना चल नहीं सकता लिख नहीं सकता बोल नहीं सकता कोई वर्क नहीं कर सकता। जितनी आत्माएं होती हैं ये शरीर युक्त ही रहती है चाहे भोग या कर्म योनी में रहे
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महापुरुष को महापुरुष ही बुला सकता है भी नहीं
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कोई देवी देवता भगवान हनुमान नहीं आ सकते किसी के अंतःकरण में जब तक की उसको भगवत प्राप्ति न हो जाए और माया निवृति न कर ले असम्भव
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आत्मा सदा शरीर युक्त रहता है शरीर से पृथक नहीं होता चाहे स्थूल शरीर हो चाहे सूक्ष्म शरीर हो चाहे दिव्य शरीर हो
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केवल भगवान के लोक वाले शरीर को छोड़ कर शेष सब शरीर प्राकृत है
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आत्मा के धारण करने योग्य दिव्य तत्व ही होगा क्योंकि आत्मा दिव्य है
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आत्मा के धारण करने योग्य परमात्मा अथवा परमात्मा का विषय परमात्मा के नाम रूप लीला गुण संत इतने का नाम परमात्मा
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जहर खाओगे मरोगे, अमृत पियोगे अमर होगे, जिसको धारण करोगे उसी का फल पाओगे
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दिव्य वस्तुओं को अपने अंतःकरण में धारण किया तो दिव्य फल मिल गया अंतःकरण दिव्य लाभ को प्राप्त कर गया
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भौतिक तत्वों को अथवा भौतिक माया के अंडर वाले जीवों को अपने मन में धारण किया यानी मन का अटैचमेंट किया तो मायिक परिणाम मिलेगा
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डेंजर मायिक क्षेत्र में प्यार किया तो माया का फल मिलेगा कोई बच नहीं सकता
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बच्चो को छोड़ दो, अरे ये सब बच्चे हमारे बिना कैसे रहेंगे ? अरे रहे न रहे रोये गाये मरे तुम छोड़ो ये तुम्हारे बच्चे नहीं है बेवकूफ ये तो जीवात्माऐं है अपने कर्म के अनुसार आई है रहेंगी जब तक रहना है प्रारब्ध के अनुसार, तुम इनके चक्कर में न पड़ो, बड़े लार्ड बन गए तुम की मैं इनका बाप हूँ
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जरूरत नहीं तू नाहे धोए दुनिया भर का नाटक करे और तमाम प्रपंच करे कोई आवश्यकता नहीं श्रीकृष्ण का स्मरण करो बाहर भी शुद्ध भीतर भी शुद्ध
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भगवान में हमारा प्रेम/भक्ति हो ये पर धर्म और श्रीकृष्ण के अलावा माया के अंडर में रहने वाले देवता/मानव/दानव कहीं भी मन का अटैचमेंट हुआ तो वो अपर धर्म है उसका परिणाम मायिक है
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इस अंतःकरण में यदि स्पिरिचुअल मैटर, ईश्वरीय पावर की चीजें आप डालेंगे तो ईश्वरीय लाभ मिलेगा यदि माया के अंडर वालों को आप डालेंगे तो माया का फल मिलेगा जैसे शरीर के लिए अगर गड़बड़ सड़बड़ खाएँगे तो रोयेंगे, बीमार होंगे मरेंगे और अच्छा खाना खाएँगे तो शरीर अच्छा बनेगा
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जिसने श्रीकृष्ण को प्रसन्न कर लिया उसने अनंत कोटि ब्रहमांड को प्रसन्न कर लिया कोई जीव उसके खिलाफ उंगली नहीं उठा सकता, कोई हस्ती नहीं, कोई शक्ति नहीं और अगर कोई गड़बड़ जैसे दुर्वासा उसको भी सबक दे दिया जाए
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श्याम सुन्दर मिलना चाहिए चाहे नरक मिले जिनके दर्शन से अनंत कोटि ब्रह्मानंद फीका हो जाता है तो नरक क्या करेगा उनके दर्शन करते रहेंगे वहाँ
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जीव ने परित्याग किया तो अपने स्वार्थ(अनंत आनन्द) के लिए किया महाराज इसमें आपको क्या निहाल कर दिया, हमारा शरीर भी प्राकृत गंदा मन भी अनादिकाल का गंदा और आत्मा तो अनंत जन्मों के कर्मों से आबद्ध है
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जीव ने कौन सी चीज आपको दी है जो आपके पास नहीं थी या आपके बराबर की थी ? वो तो ठीक है हमारे काम की नहीं है तुम्हारे पास जो कुछ था दे दिया हम इसी में खुश हो गए बस, तुमने देने की इतनी हिम्मत की इतना त्याग किया हम इसका एहसान मानते हैं
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जो आध्यात्मिक धर्म के लिए सीमित धर्म का मायिक धर्म का परित्याग करता है उसको मायिक धर्म के परित्याग का पाप नहीं भोगना पड़ता और दिव्य धर्म के अवलंब का फल अलग मिलता है
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भगवान ने हर ग्रंथ में हर सिद्धांत में लिखा की गुरु की शरणागति से ही मैं मिलूंगा
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जितने परसेंट तुम्हारे शरणागति होगी उतने परसेंट गुरु का दान होगा
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हमारी बुद्धि मायिक है भला वो सही बात क्या सोचेगी अनादिकाल से अब तक गलत बात ही सोचा है हमारी बुद्धि ने उस बुद्धि पर हम विश्वास करें ?
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गुरु के रहते हुए अपनी बुद्धि लगाने का अभ्यास अगर हम करेंगे तो फिर कभी भी हम आगे नहीं बढ़ सकते
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जो अपने ही मन के अनुसार करना है तो क्यों सुनो शास्त्र वेद गुरु की बात मनमाना किए जाओ
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क्यों इतना लेबर करो शास्त्र वेद गुरु की बात सुनने का समझने का और जब उसको मानना नहीं है जजमेंट तुम्हारी बुद्धि देगी अंत में
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तुम्हारी बुद्धि जहाँ तक है बस वहीं तक तुमको रेहने देगी उससे आगे तुम्हे बढ़ने ही नहीं देगी
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अगर कुछ समझ में आ गया तो बड़ी भगवत कृपा समझो ये तुम्हारी बुद्धि का कमाल नहीं है
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जब तक प्रैक्टिकल एक्सपीरियंस(ईश्वर प्राप्ति) न हो जाए, तुम्हारी स्पिरिचुअल पावर ईश्वर के लेबल पर न पहुँच जाए तब तक कुछ भी 'समझने' का दावा करना गलत व्यर्थ
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आज पूरा समझते हो और कल जीरो बाटे सौ हो जाओगे ऐसी प्रबल माया है
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आपकी बुद्धि है न वो लफंगिरी किए है सारे जीवन और अनंत जन्म वहीं पहुँचा देगी वो सबको, भगवान हो तो, महापुरुष हो तो जो भी संसार में आपको मिलेगा आपकी बुद्धि घसीट करके सबको अपने लेवल पर खड़ा कर देगी और आपका पतन करा देगी
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अगर कोई ईश्वर के निमित्त पाप करता है तो वो धर्म हो जाता है
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आध्यात्मिक धर्म में आधिभौतिक धर्म का लय हो जाता है
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जैसे ये कपड़े वाली गुड्डी गुडिया नकली तुमको अब मालूम पड़ने लगी आँख खुली ऐसे जब असली आँख खुलेगी तो ये भी गुड्डी गुड्डा तुम्हे नकली ही लगेगा ये फिजिकल सम्बन्ध है
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हमारी बुद्धि ने अभी येह 'निश्चय' नहीं किया पूरे तौर से की श्याम मिलन ही आनंद मिलन है इसलिए श्याम मिलन की बात सोचते सोचते अनंत जन्म बीत गए किंतु आनंद मिलान नहीं हुआ
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हम चैन के लिए बेचैन हैं
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हमारी चहल पहल दौड़ धूप 84 लाख योनियों में अनंत ब्रह्मांड में अनादिकाल से अब तक केवल चैन के लिए आनंद के लिए
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हमें ये तो विश्वास है आनंद के बिना हम कभी भी 1 क्षण को भी चैन से नहीं रह सकते
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श्याम मिलन ही आनंद मिलन है ये बात हमारी बुद्धि में बैठी नहीं खड़ी हुई बैठी नहीं, आई चली गई
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फेथ विश्वास नहीं हुआ यदि विश्वास हो जाता तो फिर सही क्या गलत क्या इससे कोई मतलब नहीं श्याम विरोधी तत्व में मन का अटैचमेंट न होता
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देखो जिस क्षेत्र में आनंद का लवलेश भी नहीं है वहाँ हम अनादिकाल से डटे हुए हैं केवल विश्वास के ऊपर बस अब आनंद मिलने ही वाला है, जरा ये काम और हो जाए इसके बाद बस ठीक है आनन्द ही आनन्द है, इस प्रकार प्लानिंग करते करते अनंत जन्म बीत गए किन्तु हम निराश नई हुए संसार की ओर बढ़ते जा रहे है
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किसी भी अवस्था में हम संसार से निराश नहीं होते और अगर निराश होते हैं तो संसार के अभाव से निराश होते है
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संसार से निराश लोग आत्महत्या नहीं करते, संसार के अभाव से यानि संसार जब छिन जाता है ये संसार का जो रूप है धन/स्त्री/पति/बाप/बेटा/प्रतिष्ठा/स्वास्थ्य/यश छिन गया वे आत्महत्या करते है, ये संसार से वैराग्य नहीं हुआ ये संसार के न मिलने से वैराग्य हुआ
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ये विश्वास हमारा बहुत ही दृढ़ है की संसार में सुख अवश्य है
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येह भी भ्रम है हर 1 को बीमारी है की अमुख व्यक्ति वो हमारा पड़ोसी सुखी है हम ही दुखी है
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अगर संसार के सब लोग अंतरयामी होते तो 1 फायदा तो जरूर होता ये की जो हमको भ्रम रहा करता है अमुख व्यक्ति बड़े आनंद में है उसकी पोस्ट भी बड़ी है उसके पास पैसा भी है उसके बेटा भी है उसके वगैरह वगैरह बहुत सा सामान है
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वो बड़े आनंद में होगा, 'होगा' ये सबसे बड़ा भ्रम हमको संसार की ओर आकृष्ट करता है
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बाहर का जो नाटक है संसार का इसे देखकर हम ये भूल जाते हैं की उस अवस्था में भी अनंत बार जा चुके हैं रह चुके हैं लेकिन क्योंकि इस समय हम वहाँ तक नहीं पहुँचे हैं इसलिए हम समझते हैं वहाँ आनन्द है
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हमारा ये विश्वास संसार में ‘ही’ सुख है बस यही विश्वास हमको ईश्वर की ओर जाने के लिए रोक रहा है
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भगवत प्राप्ति होने पर ही आप ठीक ठीक ‘समझ’ सकेंगे मनगढ़ में क्या लाभ होता है
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थोड़ी सी मन की weakness से हम अमूल्य लाभ से आप वंचित हो जाते हैं, जरा सा मन ने कहा ये करना बुद्धि ने साथ दे दिया
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अनंत जन्म में आपका असली काम श्याम मिलान वो तो बनाया नहीं और क्या काम बिगड़ता होगा संसार में
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अनंत बार मर गए तो संसार मरा नहीं
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हमारा ये विश्वास की श्याम मिलन से ही सुख मिलेगा अथवा ये विश्वास की संसार में सुख नहीं है ये दृढ़ नहीं कमजोर है इस कमजोरी को हम ही दूर करेंगे
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संत और भगवान की कृपा तो है ही उनका और धंधा/काम ही नहीं कुछ कृपा के सिवा
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उनकी कृपा को स्वीकार करना ये हमारा काम है न
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इतना सारा बनाव बन गया की तुम इतने संसार को छोड़ कर के और सब हिसाब तुम्हारा बैठ गया इतनी भगवत कृपा हो गयी तुम यहाँ पहुँच गए
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संसार से हमारा वैराग्य इतनी कम मात्रा में है की इतना बड़ा लाभ प्रत्यक्षा अनुभव करते हुए भी और संसार के चप्पल जूते खाने की बेचैनी सता रही है हम लोगों को
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'साधना' ही 1 मात्र ऐसा साधन है जिसके द्वारा हमें संसार से वैराग्य प्राप्त होगा
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कौन से शास्त्र में लिखा है कौन से बाबा जी ने तुमको बताया है की भगवान में मन लगेगा
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मन लगाना तो सिद्धी है तुमको तो मन लगाना है साधना करना है
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ऐसा बनाओ फिर बने न बने कब बने कैसे बने इस समय तो सब बन गया है इसलिए इसको काम में ले लेना ही बुद्धिमत्ता है
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हेतु में ईर्ष्या करो, ये कैसे हम से आगे बढ़ गया क्या इसमें पर लगे हैं, मैं साधना करके(फीलिंग लाकर के) और रूपध्यान करके इसके आगे बढ़ूँगा ये फीलिंग करो
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अगर हेतु में ईर्ष्या हो तो इससे तो होड़ होती है
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फील करो फील करो फील करो एक दिन ऐसी आंसू की नदी बहेगी कहोगे महाराज जी मेरा रोना बंद ही नहीं होता क्या करें
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निराशा सबसे बड़ा बाधक तत्व है सबसे बड़ा
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हमारा तो बड़ा गड़बड़ है इसलिए हम इस रास्ते में नहीं चलते, अगर संसार में जाओगे वहाँ आनंद नहीं है, तो फिर परिणाम क्या होगा ? तुरंत बुद्धि को डांटो की संसार में तो surity है आनंद न होने की ईश्वरीय क्षेत्र में आनंद है
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धीरे धीरे तुम चल पा रहे हो कोई बात नहीं लेकिन जगत की और जाने में तुम्हें क्या मिलेगा और फिर चप्पल जूते खा के फिर बहुत लंबा घूम कर यहीं ओओगे
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जैसे उड़ी जहाज को पंछी पुनि जहाज पर आवे मेरो मन अनत कहाँ सुख पावे
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तुम श्याम मिलन मत कहो आनंद मिलन कहो। श्याम सुन्दर में आनंद है ये तो 1 बोलने की भाषा है वास्तव में श्याम सुन्दर ही आनंद है
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यदि बुद्धि में येह निश्चय भर जाए जितनी मात्रा में दृढ़ हो जाए वंही आनंद है यहाँ आनंद नहीं है बस अपने आप उधर आप चलते जाए फिर किसी के रोकने से आप रुक नहीं सकते
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कोई भी प्रेम जगत या ईश्वरीय क्षेत्र का हो केवल इसी फेथ पर डिपेंड करता है उसमें कितना सुख बुद्धि मानती है
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यदि ये बात हमारे मस्तिष्क में घर कर जाए बैठ जाए की संसार में सुख नहीं है तो बात बन जाए लेकिन ये बैठ कर भी उठ जाती है झगड़ा ये है
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मन संसार में जो कुछ अनुभव करता है उससे ऊँची चीज मन को दो, अगर वो नहीं देते तो वो कहेगा भई 1 तरफ तो तुम बात ही बात करते हो इधर तो हमें प्रैक्टिकल आनंद मिलता है रसगुल्ले में, वो फिर घूम आता है इसलिए 100% वैराग्य पहले नहीं हो सकता
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ज्ञान का जो आधार है वो एक्सपीरियंस/अनुभव है बिना अनुभव के ज्ञान टिकाऊ नहीं हुआ करता, ज्ञान हो गया लेकिन वो ज्ञान फिर बदल जाता है परिवर्तनशील हो जाता है
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किसी वास्तविक संत के साथ साधना करने का अवसर मिले येह तो दुर्लभ क्या अलभ्य ही कहा जाएगा, ये करोड़ों जन्मों में कभी किसी को ऐसा सौभाग्य मिलता है
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महापुरुष के सम्पर्क में हम साधना करें तो उस साधना से हमारी भक्ति जो अकेले करने पर 10 साल में होती यहाँ 10 मिनट में हो सकती है
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जितनी जितनी आप की भक्ति होगी उतना ही वैराग अपने आप होता जाएगा
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अवकाश नहीं देते आपको गुरु की संसार का चिंतन करे, पीछे लगे रेहते हैं कौन आपका हितैषी विश्व में ऐसा है ?
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जो हितैषी कहलाने वाले है वे उल्टा हित करते है आप सोने के लिए गए, ऐ सोने दो सोने दो आराम कर रहे है भले ही ये आलसी बने
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हम अपने शरीर के आराम के दृष्टिकोण से ‘सोचने’ लगते है तो बड़े से बड़े लाभ को भी हम उलटे अर्थ में लेते हैं
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संसार के जो हितैषी आपके बड़े बड़े कहलाने वाले हैं वे ऐसे ही हितैषी हैं जिसमे आपका वास्तविक हीत न हो बस उनका अपना स्वार्थ हो और आप खुश रहे
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ऐसे आपको गुरु खुश रखने की बात नहीं मानना चाहते जिसमे आपका अहित हो, हम बहुत सख्त हैं इस बारे में
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आपको खुश करने के लिए गुरु अपनी पूरी शक्ति लगाते हैं
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जरा सा मन को ढीला कर दिया बस उसका फिर हमको फल भोगना पड़ता है
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जीतने परसेंट भगवान में मन का लगाव हुआ उतने परसेंट संसार से वैराग्य होगा अपने आप हटेगा
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जितनी भक्ति उतना वैराग्य उतना ज्ञान अपने आप होगा, जैसे 4 आना भक्ति की तो गुरु/ईश्वर कृपा 4 आना हुई तो 4 आना ईश्वरीय ज्ञान भी आपको दे दिया गया ऑटोमेटिक
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भक्ति परिपूर्ण हो गई कम्पलीट सरेंडर तो पूर्ण वैराग्य(सहज वैराग्य) और फिर पूर्ण ज्ञान
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ज्ञान वैराग्य के लिए प्रयत्न नहीं करना है ईश्वर भक्ति की साधना का प्रयत्न करो और सब अपने आप बनता जाएगा
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अगर ईश्वर भक्ति आप नहीं करते तो फिर आपका ज्ञान और वैराग्य दोनों ऐसा होगा जैसे गुब्बारा रखा है तो लगता है की बड़ी हैवी चीज है जरा सी हवा आई वो उड़ के चला गया आकाश में
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मन में यदि ईश्वर के प्रति प्रेम न होगा तो संसार से वैराग्य होगा कैसे ? वो वैराग्य थोथा है बकवास है
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यदि मन से संसारी इच्छा हटे तब वैराग्य होगा और मन से हटे तब जब मन कहीं और लगे, संसार के विरोधी पदार्थ में मन लगे
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खाना खाया पेट भर गया वैराग्य हो गया खाने से, प्यास लगी पानी पिया वैराग्य गो गया पानी से
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धर्म से पाप नष्ट होता है ये सही है लेकिन अंतःकरण की शुद्धि नहीं हो सकती
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अंतःकरण में ही तो पाप है
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यदि ईश्वर भक्ति न की जाएगी तो मन का लगाव तो ईश्वर में होगा नहीं
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पाप का जो प्रायश्चित है उससे अंतःकरण की शुद्धि नहीं हो सकती क्योंकि वो तो 1 बाहरी कर्मकांड हैं इतना दान कर दो इतना तप कर दो इतना भिक्षा मांगो इतना ये शरीर को तपाओ, तो इसके करने से मन तो संसार में ही रहेगा
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सत्य प्लस दया से युक्त धर्म और तपश्चर्या से युक्त ज्ञान प्रैक्टिकल लेकिन ये सब मिलकर भी अंतःकरण की शुद्धि नहीं कर सकता जब तक ईश्वर भक्ति नहीं
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श्रीकृष्ण भक्ति ही 1 मात्र साधन है इसके बिना अंतःकरण की शुद्धि नहीं हो सकती
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श्रीकृष्ण भक्ति अगर कोई कर ले तो कुछ भी करना अवशिष्ट नहीं और अगर वो नहीं किया तो जो कुछ किया है सब व्यर्थ गया, जितना भी कर्म धर्म ज्ञान तपस्या सब जीरो में गुणा है
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श्रीकृष्ण भक्ति करने वाले को इतनी बात समझनी है संसार का व्यवहार छोड़ो, वेद का व्यवहार छोड़ो और ईश्वर के विरोधी पदार्थ से उदासीन बनो और ईश्वर में अनन्य बनो
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लौकिक व्यवहार के चक्कर में अपने जीवन का कितना टाइम बर्बाद किया, अपना कितना बिगाड़ा किया
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तुम्हारा नुकसान करने तुम्हारे घर में कोई आवे और तुम आराम से उसको बुला लो टीका लो ये कौन समझदारी की बात है ?
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विश्व में ऐसा कोई जीव नहीं जिसको 1 भी अच्छा कहता हो तुम घोर मूर्ख हो जो ये सोचते हो की वो हमको बुरा कह देगा
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बुरा मान जाएगा वो अच्छा कब मानता है, तुम जब उसके आगे से अबाउट टर्न होके हटते हो न वैसे ही वो इशारा करता है वो बदमाश जा रहा है और अगर तुम फिर लौटे, आओ आओ हम तो कह रहे थे अभी जल्दी क्या है आप तो कभी आते ही नहीं
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अपने हृदय की बात जब आप जानते हैं की हम दूसरे के साथ एक्टिंग करते है तो ये क्यों भूल जाते है की वो भी हमारे साथ एक्टिंग करता हो जिसको हम फैक्ट मान लेते हैं
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लोक व्यवहार कम से कम से कम से कम कर दो, समेटो, लोग बुरा कहें इसकी परवा न करो
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तुम जितना उसके लिए करोगे उतना ही वो आगे बढ़ता जाएगा
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ये संसार का रूप जितना दबो उतना ही दबाता जाता है
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जितनी उसकी उपासना करो उतना ही वो तुमसे आशा करता है
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चूँकि हमारा उससे कोई लाभ नहीं इतनी ही नहीं, हानी अधिक है
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तुम्हारा तो प्रत्येक क्षण भगवान का नाम, उनका रूप, उनका गुण, उनकी लीला, उनके धाम और उनके संत में ही लगे
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माया के नाम, रूप, लीला, गुण, धाम और उनके उपासकों में मन का अटैचमेंट न होने पाए यानी उसके एटमॉस्फियर में कम से कम टाइम दो
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जितना एटमॉस्फियर तुमको संसार का मिलेगा उतना मन उसमें जाएगा तुम बच नहीं सकते
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श्याम मिलन की बात सोचने में तामस राजस सात्विक तीनों प्रकार के धर्मों का परित्याग करना होगा, 1 ही तो मन है जैसे फल चाहिए वैसे धर्म को धारण करो
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श्याम मिलन की बात इसलिए सोचना है कि हम अपने लक्ष्य को प्राप्त कर सकें
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हमारा लक्ष्य है स्वसुख वासना गंध लेस शून्य श्रीकृष्ण सुख तात्पर्य मई सेवा
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स्वसुख वासना शून्य अर्थात अपनी इच्छाओं को अपने सुख की इच्छाओं को छोड़ कर श्रीकृष्ण के सुख के लिए ही उनकी सेवा प्राप्त करना इस वाक्य को मत भूलिएगा भगवत प्राप्ति के बाद भी
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सेवा में शर्त यह है कि अपने सुख की भावना न हो यही समर्था रति है यही गोपी प्रेम है
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भक्ति से सात्विक भावों का उद्रेग होता है उसमें स्तंभ स्वेद, कंप, रोमांच आदि आनंद ‘जन्य’ सात्विक भाव उत्पन्न होते हैं
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श्याम सुंदर के सुख को ही सिद्धांत में सामने रखना है प्रतिक्षण और उनको जो सुख मिलेगा उस सुख को देखकर सुखी होना है
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जब तक जीव को अपना सुख अपना अर्थात मैं(आत्मा) का सुख अनंत आनंद अनिर्वचनीय अपौरुषेय परमानंद स्प्रिचैल, संसारी नहीं न मिल जाएगा तब तक हमारा मन सोच ही नहीं सकता दूसरे के स्वार्थ का कोई मामला
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ये हमारा जो अभ्यास है स्वार्थ का अनंत जन्मों का यही अभ्यास गुरु शरणागति में बाधक यही अभ्यास भगवान की उपासना में बाधक
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श्याम सुंदर के सुख के लिए ही उनका मिलन प्राप्त करना है उनसे मिलना है
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भगवत प्राप्ति तो सच पूछो तो सबको है नैचुरल है करना वरना नहीं है प्रत्येक आत्मा में परमात्मा रहता है
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परमात्मा आत्मा को चेतनत्व प्रदान करता है
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परमात्मा की शक्ति से ही अंतःकरण और इन्द्रियां वर्क करती है जो आप देखते/सुनते/सुंघते/रस लेते/स्पर्श करते/सोचते/डिसीजन लेते हैं जितने वर्क आप लोग करते हैं
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जो स्वप्न देखते हैं वोह भी परमात्मा के द्वारा होता है ये स्वप्न में जो जो संकल्प आप करते है नींद में, ये जीव संकल्प करने की शक्ति नहीं रखता है सत्यसंकल्प ये भगवान में ही 1 मात्र शक्ति है
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जब आप गहरी नींद में सोते हैं, तब भी वही आत्मा में रहने वाला परमात्मा आत्मा का आलिंगन करता है
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परमात्मा सर्वव्यापक है, आपके इन्द्रियों में मन में बुद्धि में आत्मा में सर्वत्र
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प्राप्त परमात्मा को क्या प्राप्त करना है, भगवत प्राप्ती कोई बड़ी चीज नहीं है वो तो है ही
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सेवय जिसके अंडर में हो उसका नाम भक्ति, जब सेवय अंडर में होगा तो सेवा हमको सदा मिलती ही रहेगी, फिर सेवय ये नहीं केह सकता की बैठे रहो हमारे पास टाइम नहीं है
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आत्यंतिक दुख निवृत्ति की कामना करना भगवत प्राप्ति के बाद ये तो भोलापन है अल्पज्ञता है नासमझी है
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अगर हमको सेवा मिली तो इसका मतलब भक्ति मिली और अगर भक्ति मिली तो उसकी नौकरानी मुक्ति तो अपने आप पीछे पीछे हाथ जोड़े खड़ी रहती है हमको भी ले लो उसको मांगने की क्या आवश्यकता
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भक्ति के बिना मुक्ति नहीं हो सकती चाहे वो कर्मी हो ज्ञानी हो तपस्वी हो योगी हो कोई भी हो
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जब भी आप को परमार्थ की कामना जाग्रत हो तो फिर स्वार्थ की कामना का परित्याग करना होगा यहीं पर गाड़ी रुकिए
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ये सब गड़बड़ हमारे अंतःकरण की है ये अंदर का संसार खतरनाक है दोष देते है हम लोग बाहर के संसार को
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अनन्य भक्ति ही तुम्हारी नहीं बनेगी अगर बुराई करोगे तो
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आत्मा के लिए शरीर आवश्यक शरीर के लिए संसार आवश्यक
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आत्मा और शरीर के बीच का वो स्थान है वो पर्सनैलिटी है अंतःकरण
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अंतःकरण कोई मोटी स्थूल वस्तु नहीं वो सूक्ष्म है
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जो आपको भीतर कोई फीलिंग होती है सोचने विचारने फील करने सुख दुख भोगने आदि की वो अंतःकरण है
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वो मन में संसार जो है बस वही संसार भयानक खतरनाक उसी ने बिगाड़ा है तुम्हारा अनंत पूर्व काल
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तुमने स्वार्थ से ही नाता रखा और स्व को 'समझा' शरीर, स्व माने आत्मा
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जब स्व को 'समझा' शरीर ये गलती हुई तो स्व का जो अर्थ/मतलब है वो भी बदल गया
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आत्मा का मतलब परमात्मा से था वो आप लगा ही नहीं सकते अर्थ क्योंकि आपने स्व का अर्थ लगाया है शरीर
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शरीर का मतलब संसार से हल होगा इसलिए आप संसार की ओर भाग पड़े बिना सोचे बिचारे भागते चले जा रहे हैं
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यही अंतःकरण भगवान की सेवा की वासना बनाएगा और यही अंतःकरण आपको परमहंसों से आगे ले जायेगा
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अंतःकरण में जो संसार की वासना हमने बनाया ममता संसार से किया वासना के कारण, मेरी माँ मेरा बाप मेरी बीवी मेरा बेटा मेरा धन यही बंधन का कारण
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ये मेरा मेरा करके जो हमने मटेरियल जगत में अपनत्व कायम किया ये वासना हमारी डेंजरस है और यही संसार है और यही माया है और यही खतरा है
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जिसने अन्दर की जागतिक वासना को मिटा दिया या उसको डाइवर्ट करके ईश्वरीय बना दिया उसको सब आनंद ही आनंद ब्रह्म ही ब्रह्म दिखाई पड़ता है
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आनंद के अलावा कोई और तत्त्व(कोई और चीज) है ही नहीं, माया के सामान में और जीव में भगवान व्याप्त
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अणु माने सूक्ष्म
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संसार में है जड़ वस्तु, चेतन इसके अतिरिक्त कुछ नहीं है
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बाहरी संसार को नमस्कार करो उसके प्रति दुर्भावना मत लाओ
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अपने मन की वासना का तिरस्कार करो सारी गड़बड़ी उसकी है ये भीतर के संसार को समाप्त करना है
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अनादिकाल से अब तक कोई भी किसी भी साधना से इस भीतर वाले संसार को समाप्त नहीं कर सका न भविष्य में कर सकेगा
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ये वासना अनादिकालीन है और इसकी जननी है माया
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माया पर प्रभाव किसी भी पावर का नहीं हो सकता केवल भगवान का है
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संसारी वासना को हटाने/मिटाने/छोड़ने/गुस्सा करने का ये प्लान गलत, इनको डायवर्ट कर दो एरिया चेंज कर दो भगवान की ओर
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ये मन ऐसा है की चाहे जागतिक वासना बना लो और चाहे ईश्वरीय वासना बना लो ये नहीं हो सकता है की हम इधर भी नई उधर भी नई पेंडिंग में पड़े रहेंगे स्थिर रहेंगे मन का वर्क ही बंद कर देंगे
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मन नित्य है अनादि है
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मन को डायवर्ट करना होगा ईश्वरीय क्षेत्र में बस यही 1 उपाय है
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हम इच्छाओं को छोड़ दे, क्रोध/लोभ को छोड़ दे तो आप हाफ मैड नहीं है फुल मैड हैं और ये दवा करने नहीं जा रहे है बीमारी बढ़ाने जा रहे है
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श्याम मिलन के बाधक तत्वों में सबसे प्रधान यही अंदर का जागतिक वासना का संसार है
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जो तुम सोचते हो संसार में सुख है या संसार हमारा है इसके बजाय श्याम मिलन की बात सोचो
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श्याम सुंदर से मिलने के लिए कुछ नहीं करना, सोचा मिल गए, आगे 1 भी सोपान नहीं 1 भी सीढ़ी नहीं है इसके आगे ये पहला और अंतिम जंक्शन है
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भगवान कहते है मेरा चिंतन करो मुझे सोचो बस मैं आ गया, सोचने भर की देर है
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अब आपने भगवत चिंतन किया 1% सोचा 1% पास आ गए, आपने 50% सोचा 50% पास आ गए, आपने सेंट परसेंट सोचा बस काम बन गया